" कुछ धर्म और श्रुति से रूढ़ता - मूढ़ता के विरुद्ध " रविवार, 26 जुलाई 2009

जागरण की यह साईट - विशेष पर उपलब्ध इन लेखों का लिंक बिना व्यक्तिगत लाभ की प्रत्याशा में केवल इन विद्वता - पूर्ण लेखों के प्रचार - प्रसार ,एवं जन- भ्रांतियों के निवारण और समाज में समरसता तथा सद्भाव बढ़ने के उद्देश्य मात्र से दिया जारहा :---

सौजन्य :- दैनिक जागरण से साभार

"ब्लॉगर टिप्स एंड ट्रिक " बतकही अंक - 3 मंगलवार, 9 जून 2009

"ब्लॉगर टिप्स एंड ट्रिक "बतकही अंक-3

*
कंप्यूटर पर टाइप करना कोई फार्म बनाना अथवा दूसरे शब्दों में कहें तो किसी ऑफिस सॉफ्टवेयर्स चाहे वह माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस हो अथवा ओपन ऑफिस सॉफ्टवेयर हो, उस में हम आप काम नही करते , सारे तकनीकी कार्य तो सोफ्टवेयर स्वयं करता , हम-आप तो मात्र उसमें दी गई सुविधाओं का उपयोग-उपभोग करते हैं |
परन्तु जब से ब्लोगिंग आरंभ की तो हमेशा से ही उत्सुकता रही है कि किसी ब्लागर टेम्पलेट की संरचना कैसी होती है , उसकी कोडिंग क्या है और हम टेम्पलेट्स कोडिंग में ;

क्या ? , कैसा ? , कहाँ पर ? , कैसे परिवर्तन कर ?

, उस टेम्प्लेट को अपने लिए ज्यादा उपयोगी बना सकते है | तो फ़िर निम्न ''झरोखा '' [लेख] हमारे-आप जैसों के लिए ही है :---






'' बतकही '' अंक : 2 गुरुवार, 26 मार्च 2009

" लय लालित्य "
अगर आप सोच रहे हैं कि कवितायें , ग़ज़ल वगैरह में हाथ अजमाया जाए तो सबसे पहले इसकी कोचिग " साहित्य शिल्पी " पर श्री सतपाल 'ख्याल 'से अवश्य लें लें | उनकी बात भी सही ही है, पर वे कुछ बताने के स्थान पर उल्टा आप पर ही सवाल दाग रहे हैं ' ग़ज़ल क्या है ? फ़िर जवाब में ख़ुद ही ' विजय वाते ' कि ग़ज़ल का एक शेर उछाल देत है, आप सब भी ज्ञान लें .........

" हिन्दी उर्दू में कहो या किसी भाषा में कहो
बात का दिल से असर हो तो ग़ज़ल होती है |"


उपरोक्त 'शे' ' में ग़ज़ल ,कविता कि सबसे की बुनियादी बात बताने के बाद

"ग़ज़ल की बुनियादी संरचना [स्थायी स्तंभ - ग़ज़ल: शिल्प और संरचना] - सतपाल 'ख्याल' "

के बारे में विस्तार से बता कर ,आगे ग़ज़ल का 'नख-शिख 'वर्णन करने लगे है | बात यहीं तक होती तब भी गनीमत होती , मगर यहाँ तो '' ख्याल '' साहब का ख्याल तो बड़ा शायराना होता जारहा श्री ,ही 'को 'को ग़ज़ल परा शर्मा श्री '' से श्री भी होता है और सतपाल जी गज़लीय पहाड़ा ही पढाने मेंa जुट गए हैं देखें ...........


ग़ज़ल को जानें [ ग़ज़ल का शिल्प समझें - स्थायी स्तंभ {पहला आलेख - भूमिका}] -सतपाल ख्याल
इसी क्रम को ही shri prana sharma और आगे बढाते हैं ..............

बहर और छंद [उर्दू ग़ज़ल बनाम हिंदी ग़ज़ल - ] - प्राण शर्मा


उर्दू ग़ज़ल बनाम हिंदी ग़ज़ल (खूबियां और ख़ामियां)[ग़ज़ल: शिल्प और संरचना - स्थायी स्तंभ, कडी-3] - प्राण शर्मा

"बतकही'' की शुरुआत [अंक:१:प्रवेशांक :नवम्बर:२००८:प्रथम] सोमवार, 17 नवंबर 2008

अंक :[] : प्रवेशांक : नवम्बर :२००८ [प्रथम]
> " केवल मेरी बात "<
सभी
"श्री गुरु पद " प्राप्त [[' गुरु-घंटाल ' अथवा ' मट्ठा- धीश ' आदि विशिष्ट परम-पद प्राप्त सहित ]]
>सह - भा ssss गी एवं नवागंतुक तथा भविष्य के ब्लॉगर बंधुओं , मैंने नीचे [फुटर में ]'बतकही ' का मूल उदेश्य या मूल मंत्र उसके "भाष्य " सहि , वर्णित कर दिया है | इसी क्रम में मैं यहाँ पर कुछ बातें स्पष्ट कर देना चाहता हूँ ::मैंने पहले अंक के लिए कुछ ब्लागों के लेखों के विषय-वस्तु का उल्लेख करते हुए उनका लिंक मात्र दे दिया है क्यों की उन ब्लॉगों के स्वामियों से कॉपी कराने की अनुमति नही ली गयी थी या उस ब्लाग से कॉपी - पेस्ट वर्जित था |जिन की रचनाएँ यहाँ सम्मिलितकी गयी है उनसे तथा अन्य ब्कगरों से अनुरोध है कि कृपया कमेन्ट के मध्यम से उनके ब्लाग की चयनितसामग्री को " बतकही "में सम्मिलित कराने की अनुमति दें; उनकी सामग्री यथावत और उन्ही के नाम से रहेगी |
:::::::::::::::::::::::::::::::: :::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: :::::::::::::::::::::::::::::::::::
'कबीरा ' पर समर रतन कुछ "अलग सा " कहने की कोशिश कर रहें हैं
यारों बनाओ मत मुझे मसीहा ,
मुझे मालूम है ;
हर मुल्क ऐ दौरां में ,
कत्ल होना ही गांधी का नसीब है ।।
हर दौर ए ईसा की तकदीर मुझे मालूम है ;------
'क्लिक -करें आगे ''अंतर्यात्री " पढ़ें '
******************************************************
तो चिट्ठा:अन्योनास्ती पर 'कंधमाल के बहाने से ' हिदुत्व की पहचान पूछी जा रही है --

"कंधमाल के बहाने से "

मैं अभी भी नही जानता कि कंधमाल उडीसा के किस हिस्से में है | आगे पदे

********************************************

धर्मं आज के युग में सबसे जरूरी है अतः 'धार्मिक होना कोई ग़लत बात नही है ,लेकिन उससे पूर्व धार्मिकता एवं साम्प्रदायिकता का अन्तर समंझाना आवश्यक है \/

कहना तो बहुत कुछ होता था ,पर जब कहने बैठते तो समझ में नही आता था कि कहाँ से आरम्भ करें ?
पर कहीं से शुरू तो करना ही था। आईये सबसे गरमा- गरम विषय के सबसे जलते शब्द "धर्म को " उठाते हैं ।
पता नही हमारे महान देश भारतवर्ष के तथाकथित महान प्रबुद्ध लोग "धर्म" शब्द से

धार्मिकता एवं सम्प्रदायिकता का अन्तर

{ द्वारा अन्योनास्ति } पढ़ें ...

*********************************************************
कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो अपने भाग्य प्रारब्ध एवं भविष्य को नही जानना चाहता ? यहाँ तक की वे कर्मवीर जो ज्योतिष्य पर विश्वास नही करने का दावा करते है ,उनके मन -मस्तिष्क में कहीं कहीं इसे जानने की इच्छा दबी - छुपी सी सोती रहती है ;यदि अवसर मिले और उनका 'मान' [अहम्] आहत हो ,अपमानित हो तो वह भी मौका नही चूकते !!!
तो आप क्यो अवसर चूकें ? और वह भी भाग्य -भविष्य प्रारब्ध जानने का तरीका सीखने का !!!
आरम्भिक सैद्धांतिक ज्ञान आप स्व पंडित गोपेश कुमार ओझा की मोतीलाल -बनारसी दासप्रकाशन दिल्ली की सुबोध ज्योतिष्य प्रवेशिका से समझे हृदयंगम करे फलि अध्ययन यहाँ से सीखें ==>>

फलित कथन कि अति-सरल पद्धति

यह तो थी मेरी बात ; अब आगे आप की [ तेरी ] बात

-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
-" योगेन्द्र मौदगिल " कि यह कविता अवश्य पढें
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------और अभिषेक ओझा का " बिना बताये ब्लोगिंग छुडाने '' "[लतिहडॉ की ]" का नुस्खा जाना तो सारी पढाई बेकार , घरवालों को [वाली को ]बताके रखियेगा , शायद ज़ुरूरत पड़ ही जाए
क्यों की आप को तो ब्लोगिंग के अलावा कुछ याद ही नही रहेगा !!!
++++++++++ +++++++++++++++ +++++++++
डा मनोज मिश्रा ,पूर्वांचल विश्वविद्यालय से भी परिचय हो जाना चाहिये ,परिचय की औपचारिकता मैं डा की पसंद से शुरू करूँगा"मा पलायनम"! पर जा कर ऐसे ही ना लौटियेगा , ''मा पलायनम !" के

ब्लॉग का नामकरण !संस्कार की कथा अवश्य पढें

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
दाल -रोटी - चावल की शिकायत तो वाजिब लगती है
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
अगर कुछ पढ़ने-पढाने लायक दिख जाता है उसे आप के समक्ष प्रस्तुत करने का लोभ मैं छोड़ नही सकता श्री गगन शर्मा [कोलकता ] ''अलग सा '' पर ' ग्रहों की कहानी पुराणों की जुबानी : ' में अपनी कहानी 'शनि ग्रह ' से आरम्भ कर रहें है तो ग़लत नही है , ज्योतिष्य में शनि धर्म-कर्म-श्रम-न्याय: का नैसर्गिक करक है ;इसका सुसंग आपको धर्म मार्ग से न्याय पूर्वक कर्म करते हुए जीवन- यापन की प्रेरणा देता है ,परन्तु आप जानते ही हैं की धर्म-न्याय के मार्ग में श्रम बहुत है , इसका कुसंग इन्ही सब से अर्थात धर्म न्याय आदि के मार्ग से विचलित करता है ;परन्तु श्रम बहुत कराता है , किया श्रम व्यर्थ चला जाता है :असफलताएं कदम चूमती हैं ][ शनि की दृष्टि से तो देवाधिदेव महादेव नही बच पाए तो हमारी बात ही क्या हैं ?
===================================================================
रही उसकी बात ? छो SSSSSSS डीए भी अबकी बार , अगली बार से
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv
विशेष
"
जिनको इसबार लिया है उन्हें यदि आपत्ति हो तो अपनी टिप्पणियों द्वारा तथा वे भी जिन्हें आपत्ति नही है या वे जो " बतकही "से जुड़ कर मेरा उत्साह बढ़ाना चाहतें है ओर चाहतें है कि उनके ब्लॉग से सामग्री यहाँ ली जाए तो टिप्पणी के साथ अपने ब्लॉग आगे पता [अन्ग्रेज़ी में जाल स्थल ] एवं यदि ब्लॉग का ना किसी भारतीय भाषा में है तो उसका नाम हिन्दी [नागरी लीपि ] में सही उच्चारण के साथ दें|| " बतकही " को एक एग्रीग्रेटर [संकलक ] के रूप भी ना लें यह केवल भीड़ से हट कर इत्मीनान से अपनी समय सुविधा के अनुसार आनन्द उठाने की एक
कोशिश मात्र है ;और
यह कितना नियमित रह पायेगा इस विष अभी कुछ नही कह सकता | बतकही बहुत ज्यादा होगयी हैं |"