"बतकही'' की शुरुआत [अंक:१:प्रवेशांक :नवम्बर:२००८:प्रथम] सोमवार, 17 नवंबर 2008

अंक :[] : प्रवेशांक : नवम्बर :२००८ [प्रथम]
> " केवल मेरी बात "<
सभी
"श्री गुरु पद " प्राप्त [[' गुरु-घंटाल ' अथवा ' मट्ठा- धीश ' आदि विशिष्ट परम-पद प्राप्त सहित ]]
>सह - भा ssss गी एवं नवागंतुक तथा भविष्य के ब्लॉगर बंधुओं , मैंने नीचे [फुटर में ]'बतकही ' का मूल उदेश्य या मूल मंत्र उसके "भाष्य " सहि , वर्णित कर दिया है | इसी क्रम में मैं यहाँ पर कुछ बातें स्पष्ट कर देना चाहता हूँ ::मैंने पहले अंक के लिए कुछ ब्लागों के लेखों के विषय-वस्तु का उल्लेख करते हुए उनका लिंक मात्र दे दिया है क्यों की उन ब्लॉगों के स्वामियों से कॉपी कराने की अनुमति नही ली गयी थी या उस ब्लाग से कॉपी - पेस्ट वर्जित था |जिन की रचनाएँ यहाँ सम्मिलितकी गयी है उनसे तथा अन्य ब्कगरों से अनुरोध है कि कृपया कमेन्ट के मध्यम से उनके ब्लाग की चयनितसामग्री को " बतकही "में सम्मिलित कराने की अनुमति दें; उनकी सामग्री यथावत और उन्ही के नाम से रहेगी |
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'कबीरा ' पर समर रतन कुछ "अलग सा " कहने की कोशिश कर रहें हैं
यारों बनाओ मत मुझे मसीहा ,
मुझे मालूम है ;
हर मुल्क ऐ दौरां में ,
कत्ल होना ही गांधी का नसीब है ।।
हर दौर ए ईसा की तकदीर मुझे मालूम है ;------
'क्लिक -करें आगे ''अंतर्यात्री " पढ़ें '
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तो चिट्ठा:अन्योनास्ती पर 'कंधमाल के बहाने से ' हिदुत्व की पहचान पूछी जा रही है --

"कंधमाल के बहाने से "

मैं अभी भी नही जानता कि कंधमाल उडीसा के किस हिस्से में है | आगे पदे

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धर्मं आज के युग में सबसे जरूरी है अतः 'धार्मिक होना कोई ग़लत बात नही है ,लेकिन उससे पूर्व धार्मिकता एवं साम्प्रदायिकता का अन्तर समंझाना आवश्यक है \/

कहना तो बहुत कुछ होता था ,पर जब कहने बैठते तो समझ में नही आता था कि कहाँ से आरम्भ करें ?
पर कहीं से शुरू तो करना ही था। आईये सबसे गरमा- गरम विषय के सबसे जलते शब्द "धर्म को " उठाते हैं ।
पता नही हमारे महान देश भारतवर्ष के तथाकथित महान प्रबुद्ध लोग "धर्म" शब्द से

धार्मिकता एवं सम्प्रदायिकता का अन्तर

{ द्वारा अन्योनास्ति } पढ़ें ...

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कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो अपने भाग्य प्रारब्ध एवं भविष्य को नही जानना चाहता ? यहाँ तक की वे कर्मवीर जो ज्योतिष्य पर विश्वास नही करने का दावा करते है ,उनके मन -मस्तिष्क में कहीं कहीं इसे जानने की इच्छा दबी - छुपी सी सोती रहती है ;यदि अवसर मिले और उनका 'मान' [अहम्] आहत हो ,अपमानित हो तो वह भी मौका नही चूकते !!!
तो आप क्यो अवसर चूकें ? और वह भी भाग्य -भविष्य प्रारब्ध जानने का तरीका सीखने का !!!
आरम्भिक सैद्धांतिक ज्ञान आप स्व पंडित गोपेश कुमार ओझा की मोतीलाल -बनारसी दासप्रकाशन दिल्ली की सुबोध ज्योतिष्य प्रवेशिका से समझे हृदयंगम करे फलि अध्ययन यहाँ से सीखें ==>>

फलित कथन कि अति-सरल पद्धति

यह तो थी मेरी बात ; अब आगे आप की [ तेरी ] बात

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-" योगेन्द्र मौदगिल " कि यह कविता अवश्य पढें
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------और अभिषेक ओझा का " बिना बताये ब्लोगिंग छुडाने '' "[लतिहडॉ की ]" का नुस्खा जाना तो सारी पढाई बेकार , घरवालों को [वाली को ]बताके रखियेगा , शायद ज़ुरूरत पड़ ही जाए
क्यों की आप को तो ब्लोगिंग के अलावा कुछ याद ही नही रहेगा !!!
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डा मनोज मिश्रा ,पूर्वांचल विश्वविद्यालय से भी परिचय हो जाना चाहिये ,परिचय की औपचारिकता मैं डा की पसंद से शुरू करूँगा"मा पलायनम"! पर जा कर ऐसे ही ना लौटियेगा , ''मा पलायनम !" के

ब्लॉग का नामकरण !संस्कार की कथा अवश्य पढें

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दाल -रोटी - चावल की शिकायत तो वाजिब लगती है
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अगर कुछ पढ़ने-पढाने लायक दिख जाता है उसे आप के समक्ष प्रस्तुत करने का लोभ मैं छोड़ नही सकता श्री गगन शर्मा [कोलकता ] ''अलग सा '' पर ' ग्रहों की कहानी पुराणों की जुबानी : ' में अपनी कहानी 'शनि ग्रह ' से आरम्भ कर रहें है तो ग़लत नही है , ज्योतिष्य में शनि धर्म-कर्म-श्रम-न्याय: का नैसर्गिक करक है ;इसका सुसंग आपको धर्म मार्ग से न्याय पूर्वक कर्म करते हुए जीवन- यापन की प्रेरणा देता है ,परन्तु आप जानते ही हैं की धर्म-न्याय के मार्ग में श्रम बहुत है , इसका कुसंग इन्ही सब से अर्थात धर्म न्याय आदि के मार्ग से विचलित करता है ;परन्तु श्रम बहुत कराता है , किया श्रम व्यर्थ चला जाता है :असफलताएं कदम चूमती हैं ][ शनि की दृष्टि से तो देवाधिदेव महादेव नही बच पाए तो हमारी बात ही क्या हैं ?
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रही उसकी बात ? छो SSSSSSS डीए भी अबकी बार , अगली बार से
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vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv
विशेष
"
जिनको इसबार लिया है उन्हें यदि आपत्ति हो तो अपनी टिप्पणियों द्वारा तथा वे भी जिन्हें आपत्ति नही है या वे जो " बतकही "से जुड़ कर मेरा उत्साह बढ़ाना चाहतें है ओर चाहतें है कि उनके ब्लॉग से सामग्री यहाँ ली जाए तो टिप्पणी के साथ अपने ब्लॉग आगे पता [अन्ग्रेज़ी में जाल स्थल ] एवं यदि ब्लॉग का ना किसी भारतीय भाषा में है तो उसका नाम हिन्दी [नागरी लीपि ] में सही उच्चारण के साथ दें|| " बतकही " को एक एग्रीग्रेटर [संकलक ] के रूप भी ना लें यह केवल भीड़ से हट कर इत्मीनान से अपनी समय सुविधा के अनुसार आनन्द उठाने की एक
कोशिश मात्र है ;और
यह कितना नियमित रह पायेगा इस विष अभी कुछ नही कह सकता | बतकही बहुत ज्यादा होगयी हैं |"



8 टिप्पणियाँ:

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: ने कहा…

kaisaa hai

Unknown ने कहा…

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है, ढेरों शुभकामनायें… सिर्फ़ एक अर्ज है कि वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दें, फ़िलहाल हिन्दी चिठ्ठाजगत में इसकी कोई आवश्यकता नहीं है… लिखते रहें…

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

पूरा मन लगाकर चौपाल जमाइए जी। हम भी कोशिश करके आते रहेंगे। हमारा पता है सत्यार्थमित्र नामक ब्लॉग। यहीं हम मिल जाएंगे। http;//satyarthmitra.blogspot.com

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

आपका यह ब्लॉग रचनाधर्मिता के प्रति समर्पित एवं बहुत सुकून देने वाला है .मुझे विश्वास है कि आप इस पर अपना सर्वश्रेष्ठ सदा हम सब तक पहुचायेंगे .

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है निरंतरता की चाहत है समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दे
प्रदीप मानोरिया
09425132060

संगीता पुरी ने कहा…

आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे..... हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ब्लाग परिवार में आपका स्वागत है। आईये, बुलाईये, मिल बैठिये, कुछ सुनिए, कुछ सुनाईये इसी से तो आत्मीयता पनपेगी हम बिन देखे अपनों में।

अभिषेक मिश्र ने कहा…

'बतकही' अपने आप में एक अनूठा प्रयास है. इसके लिए आपको बधाई. मेरे ब्लॉग gandhivichar.blogspot.com पर टिप्पणी का आभार. आपका ईमेल न मिलने के कारण आपकी टिप्पणी के साथ ही मैंने अपना उत्तर दे दिया है. आशा है आगे भी आपकी टिप्पणियां और मार्गदर्शन मिलता रहेगा.

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गंभीर लेखों पर अपनी सम्पूर्ण विस्तृत प्रतिक्रिया दें ,केवल अच्छा है या लेख .बड़ा सारगर्भित ही कह देने भर सेकाम नही चलेगा यातो पक्ष में आकर या विरोध में जा कर अथवा इसके अतिरिक्त कोई और -अन्य राह या सिद्धांत भी है है तो उसे सार्थक चर्चा -बहस के लिए प्रस्तुत करे तभी हमारा आप का लिखना सार्थक होगा वरना एक दूसरे के अहम् को सहलाना मात्र है | मैंने इसी सिद्धांत को अपनाते हुए अपनी पोस्टों पर लिखना कम कर के दूसरो के विचारणीय पोस्टों पर टिप्पणी देना आरम्भ करदिया है ;समझ लीजिये वही मुझे लेखन की संतुष्टि दे देता है|आप से भी यही आपेक्षा करता हूँ | मैंने ::बतकही :: का मूल मंत्र भी यही दिया " मेरी : तेरी : उसकी - बात " यहाँ उसी की बात का यही अर्थ है ....vvvvvvvv
"" फ़िर भी आप अपने ढंग से टिप्पणी देने के लिए स्वतंत्र हैं ""

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